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१०४, ज्ञानविलास निरखो नारी ॥ दांडी पांच चलावे जाकुं, पतवारी
ग हे सुखकारी ॥१०॥ १॥ चनदिसि चित्रित पाट पटंबर, जीतर साहब सुता सारी ॥ चनदिसि तेन तरंड फिरतहे, वालो साहब.गांफल जारी ॥ श्र० ॥॥ शैल सुनत उठ बेठे साहब, नाज गए जहाँ तसकर सार। ॥ चारित ज्ञानानद सत्तार, थानंद हरख लहे हुशिधारी ॥ १० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ पद उंगणत्रीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ राम राम सब जगहि माने, राम रामको रूप न जाने ॥रा० ॥ टेक ॥ कवण राम कुण नगरी वासो, कहांसें आयो किहां जयो वासो ॥रा ॥१॥ राम राम सहु जगमें व्यापी, राम विना हे कैसे बालापी ॥ राम विनाहे जंगल वासा, पाडे को जाकी न करे श्रासा ॥रा ॥ रा. महि राजा रामहि राणी, राम रामहि हैरोतानि ॥ रंटन करतहे कवन रामको, कैसो रूप बतावो वाको ॥ रा० ॥३॥ जे के वाको रूप बतावे, तेहिज साचो मुज मन नावे ॥ सो निधि चारित ज्ञानानंदें, जाने आपनो राम श्रानंदें ॥ राम् ॥४॥इति ॥
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