________________
जशविलास
३७ चित्त बांध्यो सब साथे, कुन पेसे ले घर खूना ॥ राग जग्या प्रजुसु मोहि परगट, कहो नया कोऊ कहो जूना ॥ घमि ॥ ३॥ लोक लाजसें जो चित चोरे, सोतो सहज विवेकही सूना ॥ प्रजुगुन ध्यान विगर भ्रम नूला, करे किरिया सो राने रूना ॥ घमि ॥ ४ ॥ मेंतो नेह कियो तोहि साथे, अब निवाह तोतो व हूना॥जस कहे तो बिन पोरन सेवू, अमिय खाश्कुन चाखेचूना॥घमि०॥॥इति॥
॥ पद अडतालीशमुं॥ ॥ राग श्मन कल्याण ॥ ऐसे सामी सुपार्श्वसें दिल लगा, उखनगा सुख जगा जगतारणा ॥राजहंसकुं मानसरोवर, रेवा जल ज्युं वारणा ॥ ऐसे ॥१॥ टेक ॥ मोरकुं मेह चकोरकुं चंदा, मधु मनमथी चित्त गरना ॥ फूल अमूल जमरकी अंबही, कोकिलकुं सुखकारना ॥ ऐसे ॥२॥सीताकं राम काम ज्यु रतिकुं, पंथीकं घर बारना ॥ दानी कुं त्याग याग बह्मनकुं, योगीकुं संयम धारना ॥ ऐसे ॥३॥ नंदनवन ज्युं सुरकुं वन, न्यायीकुं न्याय निहारना ॥ त्युं मेरे मन तुंहि सुहायो, थोर
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org