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जश विलास
पर पर परखत हि जया, जैसा हीरा जाचाहो ॥ श्रोर देव सवि परहस्या, में जाणी काचाहो ॥ सुमति० ॥ ॥ १ ॥ तेसी किरिया हे खरी, जैसी तुज वाचाहो ॥ थोर देव सवि मोहें जरया, सवि मिथ्या माचादो ॥ सुमति० ॥ २ ॥ चतरासी लखवेषमां, हुं बहु पर नाचाहो || मुगति दान देइ साहिबा, अब करहो ऊंचाड़ो || सुमति० ॥ ३ ॥ लागी अग्नि कषायकी, सब गेरही श्राचादो ॥ रक्षक जाणी श्रादस्या, में तुम शरन माचाहो ॥ सुमति० ॥ ४ ॥ पक्षपात नहिं को सुं, नहिं लालच लांचाहो ॥ श्रीनय विजय सुशिष्यको, तोसुं दिल राचाहो ॥ सुमति० ॥ ॥ इति ॥
|| पद सुडतालीशमुं ॥
॥ राग पूरवी ॥ घमि घमि सांजरें सांइ सलूना, घरि घ०ि ॥ टेक ॥ पद्म प्रभु जिन दिलसें न बिसरे, मानु कियो कबु गुनको टूना ॥ दरसन देखतही सुख पाउं, तो चिन होतढुं उजा मूना ॥ घमि० ॥ १ ॥ प्रजुगुन ज्ञान ध्यान विधि रचना, पान सुपारी काथा चूना ॥ राग जयो दिलमें योगें रहे छिपाया बाना वूना ॥ घमि० ॥ २ ॥ प्रजुगुन
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