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________________ ३० जशविलास तो चिततें उतारनां ॥ ऐसे० ॥ ४॥ श्रीसुपार्श्व दरिशन पर, तेरे, कीजें कोमी जवारना ॥ श्री नय विजय विबुध सेवककुं, दियो समता रस पारना। ऐसे ॥२॥ इति ॥ ॥ पद गणपचाशमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ श्रीचंद्रप्रन जिनराज राजे, वदन पूनमचंदरे ॥ जविक लोक चकोर निरखत, लहे परमानंदरे ॥ श्रीचंद्र० ॥ १ ॥ टेक ॥ महमदे महिमाएं जसजर, सरस जस अरविंदरे ॥ र कणे कविजन जमर रशिया, लहि सुख मकरंदरे ॥ श्री चंद्र ॥ २ ॥ जस नामे दोलत अधिक दिये, टले दोहग दंदरे ॥ जस गुन कथा जव व्यथा जांजे, ध्यान शिवतरु कंदरे || श्री चंद्र० ॥ ३ ॥ विपुल हृदय विशाल जुजयुग, चलित चाल गयंदरे ॥ - तुल अतिशय महिमा मंदिर, प्रणत सुरनर वृंदरे ॥ श्री चंद्र० ॥ ४ ॥ में दास चाकर प्रभु तेरो, शीष्य तुज फरजंदरे ॥ जस विजय वाचक इम विनवे, टालो मुज जव फंदरे ॥ श्री चंद्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद पचाशमुं ॥ ॥ राग केदारो ॥ में कीनो नहीं तो बिन थोर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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