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जशविलास नता सबही हमारी, प्रजु तुज समकित दानमें ॥ प्रजु गुन श्रनुजवके रस श्रागें, श्रावत नही कोउ म्यानमे ॥ हम ॥४॥ जिनहि पाया तिनहि विपाया, न कहे कोजके कानमें ॥ ताली लागी जब अनुजवकी, तब जाने कोउ शानमें ॥ हम ॥५॥ प्रज्जु गुन अनुजव चंअहास्य ज्यो, सोतो न रहे म्यानमें ॥ वाचक जश कहे मोह महा अरि, जीत लीयो हे मेदानमें ॥ हम ॥ ६ ॥ इति ॥
॥पद सत्तरमुं॥ ॥ राग काफी ॥ देखतही चित्त चोर लीयो है, देखतही चित्त चोर लीयो ॥ सामको नाम रुचे मोहि श्रह निस, साम बिना कहा काज जीयो ॥ देखतही० ॥१॥ टेक ॥ सिझवधूके लीए मुफ बगेरी, पशुथनके सिर दोष दीयो॥ परकी पीर न जाने तासों, वैर वसायो जो नेह कीयो॥ देखतही० ॥२॥प्रान धरूं में प्रानपिया बिन, वज्रहथें मोहि कठिन हियो । जस प्रनु नेमि मिले. पुःख डायो, राजुल शिवसुख अमृत पियो । देखत ही० ॥३॥ इति ॥
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