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जशविलास
॥ पद पन्नरमुं॥ ॥रागनायकी कनडोगयागति कौन हे सखी तोरी, कोन हे सखी तोरी ॥ टेक ॥ श्त उत युहि फिरत हे घरेली, कंत गयो चित चोरी॥यागति॥१॥ चितवत हे बिरहानल बुजवत, सिंच नयन जल जोरी ॥ जानत हे उहां हे बडवानल, जलण जत्यो जिहुं श्रोरी ॥ यागतिः ॥२॥ चल गिरना. र पिया दिखलावं, नेह निहावन धोरी ॥ हलि मिति मुगति मोहोलमें खेले, प्रनमे जस याजोरी ॥यागति॥३॥ इति ॥
॥पद शोलमुं॥ ॥राग सारंग ॥ हम मगन लए प्रजु ध्यानमें, टेक ॥ बिसर गश् उविधा तन मनकी, अचिरा सुत गुन ज्ञानमें ॥ हम ॥१॥ हरिहर ब्रह्म पुरंदरकी शकि, श्रावत नांहि कोउ मानमें ॥ चिदानंदकी मोज मची हे, समतारसके पानमें ॥ हम ॥ ॥॥ इतने दिन तुं नांहि पिलान्यो मेरो, जन्म गमायो अजानमें ॥ श्रवतो अधिकारी होइ बेठे, प्रजु गुन अखय खजानमें ॥ हम ॥३॥ गश् दी
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