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जशविलास
॥पद चौदमुं॥ ॥राग नायकी कनडो॥ चेतन ममता बांड परीरी, दूर परी॥ चेतन ॥ टेक ॥यर रमनिसुं प्रेम न कीजें,श्रादरी समता श्राप वरीरी ॥ चेतन०॥ ॥१॥ ममता मोह चंडालकी बेटी, समता संयम नृप कुमरीरी ॥ ममता मुख पुगंध असत्यें, समता सत्य सुगंध जरीरी। चेतन ॥२॥ ममतासें लरते दिन जावे, समता नहिं को साथ लरीरी, ममता हेतु बहुत हे पुश्मन, समताके कोऊ नथरीरी॥ चेतन ॥३॥ ममताकी धर्मति हे थाली, डाकिनी जगत अनर्थ करी ॥ समताकी शुनमति हे आली, परउपगार गुणे समरीरी ॥ चेतन० ॥४॥ ममता पुत्त जए कुल खंपन, सोक बियोग महा मत्सरीरी ॥ समता सुत होवेगे केवल, रहे दिव्य निशान धुरीरी ॥ चेतन ॥ ५॥ समता मग्न रहे जो चेतन, जो ए धारे शीख खरीरी॥ सुजसविलास लहेगो तो तुं, चिदानंदघन पदवि वरीरी ॥ चेतन० ॥ ६ ॥ इति ॥
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