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जश विलास
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प्रनि ॥ प्रानथी जिन्न दाख्यो, प्रत्यक्ष प्रमान ॥ प्रभु तेरो ० ॥४ ॥ जिन्न ने जिन्न कबु, स्याद्वादें वान ॥ जस कड़े तु हैं तु हें, तुं हें जिन जान ॥ प्र० ॥५॥ ॥ पद तेरमुं ॥
॥ राग परज ॥ चेतन राह चले ऊलटे ॥ टेक ॥ नखशिखलो बंधनमां बेठे, कुगुरु वचन गुलटे ॥ चेतन० ॥ १ ॥ विषय विपाक जोग सुख कारन, बिनमें तुम पलटे ॥ चाखी बोर सुधारस समता, न वजल विषय घटे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ जवोदधि निच रहे तुम ऐसे, यावत नाहिं तटे ॥ जिहां तिमिंगल घोर रहतुहे, चार कषाय कटे ॥ चेतन० ॥ ॥ ३ ॥ वरविलास बनिता नयनके, पडे पास पलटे | अब परवश जागे किहां जायोगे, काले मोहनटे ॥ चेतन० ॥ ४ ॥ मन मेले जो किरिया कीनी, उगे लोक कपटे | उनकुं फलबिनुं जोग मिटेगो, तुमकुं नांहि रटे ॥ चेतन० ॥ ५ ॥ सीख सुनी ब रहो सुगुरुके, चरणकमल निकटे ॥ युं करते तुम सुजस लहोगे, तत्त्व ज्ञान प्रगटे ॥ चेतन० ॥ ६ ॥ इति ॥
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