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जशविलास तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा। तुमही नजिक नजिक हे सबहीं, शछि अनंत अपारा ॥ शीतल ॥३॥ विषय लगनकी अगनि ब्रूजावत, तुम गुन अनुनव धारा ॥ मगनता तुम गुनरसकी, कुन कंचन कुन दारा ॥ शीतल ॥४॥ शीतलता गुन दोर करत तुम, चंदन काद बिचारा॥ नामेहीं तुम ताप हरतहे, वाकुं घसत घसारा ॥ ॥शीतल ॥५॥ करह कष्ट जन बहत हमारे, नाम तिहारो श्राधारा ॥ जस कहे जनममरण जय नागो, तुम नामे नवपारा॥शीतल॥६॥ इति ॥
॥ पद बारमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ प्रजु तेरो वचन सुन्यो जबहीथे सुविहान ॥ टेक ॥ तबहीथे तत्त्व दाख्यो, चा. ख्यो रस ध्यान ॥ जाव नाली ए जागी, मानुं कीधो सुधापान ॥ प्रनु तेरो॥१॥ श्रुतचिंता ज्ञान सोतो, खीर नीर वान ॥ विषय तृष्णा बुकावे, सोहि साचो ज्ञान ॥ प्रनु तेरो० ॥२॥ गायन हरन तातें; नादे धरे कान ॥ तेसेहिं करत मोहिं, संत गुन ध्यान ॥ प्रजु तेरो ॥३॥ प्रानतें अधिक सांझ, केसे कहूं
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