________________
जशविलास
१५ ॥पद अढारमुं॥ .॥ राग कल्याण ॥ सखुने प्रनु नेटे, अंतरीक प्रनु नेटे ॥ स ॥ टेक ॥ जगत वबल हित दाइ, स० ॥ मोह चोर जब जोर फिरावत, तब समरवो प्रनु नेटे ॥ स ॥१॥ थोर सखा चार दिवसके, साच सखा प्रनु बेठे ॥ इतनो श्राप विवेक विचारो, मायामें मत लेटे ॥ स ॥२॥ जामणडे तो नूख न नांगे, बिनुं जोजन गए पेटे ॥ नगवंत नक्ति बिना सवि निष्फल, जस कहे नक्तिमें नेटे ॥ स ॥३॥इति ॥
॥ पद ओगणीशमुं॥ - ॥राग धन्याश्री ॥ जिन चरण सरन ग्रहुं ॥ टेक ॥ हृदयकमलमें ध्यान धरतुहे, सिर तुज थाण वहुँ ॥ जिन ॥१॥ तुज सम खोल्यो देव खलकमें, पैट्ये नांहिं कहुं ॥ तेरे गुनकी जपुं जपमाला, श्रद निसि पाप दडं ॥ जिन ॥२॥ मेरे मनकी तुम सब जानो, क्या मुख बहुत कहुं, कहे जस बिजय करो तुम साहिब, ज्युं जव फुःख न लहुँ । जिन ॥३॥ इति ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org