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जशविलास
॥ पद वीशमुं॥ ॥राग जयजयवंती ॥ अजब बनीहे जोरी, अर्धग धरीहे गोरी ॥ शंकर शंकहिं बोरी, गंगसिर धरीहे ॥ ॥१॥प्रेमके पीबत प्याले, होत महा मतवाले, न चलत तिहूं पाले, असवारी खरी हे॥१०॥२॥ ज्ञानीको एसो उत्साह, समताके गले बांह, सिरपर जगनाह, श्राण सुर सरीहे ॥०॥३॥ लोकके प्रवाह नाहि, सुजस विलास मां हि, चिदानंदघन बाहि, रति अनुसरी हे ॥१०॥४॥ इति ॥
॥ पद एकवीशमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ धर्मके विलास वास, झानके महा प्रकास, दास नगवंतके, उदास नाव लगे हें ॥ समता नदीतरंग, अंगही उपंग चंग, मजान प्रसंग रंग, अंग जगमगेहें ॥ धर्म ॥१॥ कर्मके संग्राम घोर, लरे महा मोह चोर, जोर ताको तोरवेंकुं, सावधान जगेहें ॥ शीलको धरी सनाह, धनुख महा उत्साह, ज्ञान बानके प्रवाह, सब वेरी जगे हें ॥ धर्म ॥२॥थायो हे प्रथम सेन,
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