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जश विलास कामको गयो हे रेन, हरिहर ब्रह्म जेण, एकलेने उगेहें, क्रोध मान माया लोज, सुजट महा अखोज, हारे सोय बोड योज, मुख देश जगेहें ॥ धर्मः॥३॥ नोकषाय नये खीन, पापको प्रताप हीन, ओर जट नये दिन, ताके पग उगेहें। कोउ नहीं रहे गढे, कर्म जो मिले ते गाढे, चरनके जिहा काढे, करवाल नगेहें ॥ धर्मः ॥४॥जगत्रय जयो प्रताप, तपत अधिक ताप, तातें नाहिं रही चाप, श्ररी तगतगेहैंसुजस निसान साज, विजय वधाइ लाज, ए. से मुनिराज, ताकुंहम पाय लगेहें॥धर्म०॥५॥इति ॥
॥पद बावीशमुं॥ ॥ राग रामकली ॥ षनदेव हितकारी, जगत गुरु रुपनदेव हितकारी ॥टेक ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति ब्रह्मचारी॥रुषनदेव० ॥ ॥१॥ वरसी दान देई तुम जगमें, इसति इति निवारी ॥ तैसी काही करतु नांही करुना, साहिब बेर हमारी ॥ षज॥॥ मांगत नहिं हम हाथी घोरे, धन कन कंचन नारी ॥ दियो मोहि चरन कमलकी सेवा, याहि खगत मोहि प्यारी ॥ षज० ॥
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