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ज्ञानविलास साहिब नाम संजारो॥ जो ॥ टेक ॥ सुतां सुतां रयन विदानी, अब तुम नींद निवारो ॥ मंगलकारि अमृत वेला, थिरचित्त काज सुधारो ॥ जो ॥ ॥१॥ खिनजर जोतुं याद करेगो, सुख नीपजेगो सारो ॥ वेला वीत्या हे परतावो, क्युं कर काज सुधारो ॥ जो ॥२॥ घरव्यापारे दिवश वितायो, राते निंद गमायो॥ न वेला निधि चारित्र श्रादर, ज्ञानानंद रमायो ॥ नो० ॥३॥ इति ॥
॥पद त्रीजुं॥ ॥ राग भैरव ॥ मेरे तो मुनि वीतराग, चित्त माहे जोई ॥ मेरे ॥ टेक ॥ और देव नाम रूप, दूसरोन कोई ॥ मेरे ॥१॥ साधनके संघ खेल खेल, जाति पांत खोई ॥ अवतो वात फैल गश, जाने सब कोई॥ मेरे ॥२॥ घाति करम नसम बाण, देहमें लगाई ॥ परमयोग सुनाव, खायक चित्त लाई ॥ मेरे ॥३॥ तंबूतो गगन नाव, नूमि शयन नाई॥ चारित नवनिधि सरूप, ज्ञानानंद नाई॥ मेरे ॥४॥इति ॥ .
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