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ज्ञानविलास ॥ उही श्रीअसिथाउसायनमः॥
॥अथ ॥ ॥श्रीज्ञानविलास प्रारंजः॥
॥पद पदेढुं॥ ॥ राग भैरव ॥ चारित्र पति श्री चारित्र पावं, नवनिधि श्रीगृह ध्येयं ॥ चा० ॥ टेक ॥ नक्ति जर निर्डर गण ननित, नित्यं क्रम मर्चेयं ॥ चा॥१॥ रितु शर घन वैडूर्य मणि छवि, रविकर रुचि सुशरीरं॥कज मकरंदोत्कट सम वदनं, दसन कुंदल हीर ॥ चा ॥२॥नम्रित धनु पूरण शशि नयनं, शांति सुधारस रूपं ॥अनुपमउत्कटगुण गण जलाधं, परमानंद सरूपं ॥ चा॥३॥ गंजीरोत्कट शरत्रि सगुण, युक्त वचामृत पेयं ॥ त्रिजुवन गत नवि धर्मुपशमनं, शिवतरुबीज गृहेयं ॥ चा ॥४॥ पुष्पफलान्वित सुरतरुलब्धं, वंबित पूरण एयं ॥ चारित्रनंदी श्रीसंततिदायक, पार्श्व चारित्र जिन झेयं ॥चा०॥५॥ति॥
पद बीजं ॥ ॥ राग भैरव ॥ जोर जयो उठ जागो मनुवा,
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