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ज्ञानविलास
॥पद चोथु ॥ ॥.राग भैरव.॥ ब्रह्मरूप ज्योतिरूप, चित्तमा संनारके ॥ ब्रह्म ॥ टेक ॥ निर्मल जाको रूप विराजे, अव्य नाग वीतराग, स्वगुन लोग परम योग,ज्ञान दरश एकरूप, जगतनास कारके ॥ ब्रह्म ॥१॥ अक्षय अविचल गुणगणधामी, परमरूपातम रूप, सिझसरूप विश्वनूप, बाल तरणि रोचिरूप, दरव नाव नासके ॥ ब्रह्म ॥२॥ परमानंद चेतनमय मूरति, रिपुनिकंद बोधकंद, सुख अमंद खनवृंद, तत्वरंग चारितनंद, ज्ञानानंद वासके ॥ ब्रह्म॥३॥इति ॥
॥पद पांचमुं॥ ॥ राग भैरव ॥ ब्रह्मज्ञान कांति देख, आनंद अंग पश्यां ॥ ब्रह्म ॥ टेक ॥ जव्य जन संसटाल, तिन लोक प्रतिपाल ॥ करम वरग रहित होय, सासत गुण लहियां ॥ ब्रह्म ॥१॥ सहज निजपद पहिचान, शुज अशुज नाव जान ॥ सकल पर: जन विनाव, दूरथी तजैयां ॥ ब्रह्म ॥२॥ फटिक सम खहमान, विमल गुण गण निधान ॥ परमनिधि चारितरूप, ज्ञानानंद लदियां ॥ ब्रह्म ॥३॥
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