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ज्ञानविलास
॥ पद बहु॥ ॥राग वेलावल ॥ साहिब वात पहिचानियें, जानो तेहनो नाव ॥ वह जान्या बिन ए तनु, पाइन सम गव ॥ साहिब० ॥ १॥ झाने ग्येयकी एकता, ध्याने ध्येय समाय ॥ निज अनुन्नव घट जोश्ये, कहावें स्योरमाय ॥साहिब॥२॥वेद पुरानमें कबुनहीं,नहीं कबुवाको सहिनान॥गं निधि चारितरूपमय, ज्ञानानंद सुजान॥ साहिब०॥३॥इति॥
॥पद सातमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ या नगरी में क्युं कर रहना, राजा लूंट करे सो सहना ॥ या० ॥टेक॥ नहीं व्यापार इहां को चाले, नही को घरमांहें गहना ॥ या०॥१॥ तसकर पण निज दाव विचारे, जेद निहाले फिर फिर रहना ॥ नारी पांच शीपाश्सा, स्मण करे नित कुणसें कहना ॥ या ॥२॥ अंजलि जल जिम खरची खूटे, श्राखर ग दिन देगा परना ॥ यातें नवनिधि चारित संयुत, ग ज्ञानानंद हेगा सरना ॥ या० ॥३॥इति ॥
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