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________________ ज्ञान विलास ॥पद आठमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ साधो ना देखो नायक माया ॥ सा ॥टेक ॥ पांच जातकावेस पहिराया, बहु विध नाटक खेल मचाया ॥ सा ॥१॥ लाख चौरासी योनिमांहे, नानारूपें नाच नचाया ॥ चवदह राजलोक गत कुलमें, विविध जांतिकर नाव दिखाया ॥ सा०॥॥ अजतक नायक धायो नांहिं, हारगयो कहुं कुनसें नाया॥यातें निधि चारित्र सहायें, अनुपम ज्ञानानंद पदनाया ॥ सा ॥३॥ ॥पद नवमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ श्रवहीं प्यारे चेतले, घर पूं. जी संजारो ॥ अब० ॥ टेक ॥ सहु परमाद तुं गंमदे, निरखो कागल सारो ॥ श्र० ॥ १ ॥ मगरूरी तुम मत करो, नहिं परगल तुझ माया ॥ पूंजी तो उडी घणी, व्यापार वधाया ॥ १० ॥२॥ गांफिल होय कर मतरदे, पग देख फिलावो, घटमें निधि चारित गही, ज्ञानानंद रमावो ॥ १० ॥३॥ ॥पद दशमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ प्यारे चित्त विचारले, तुं क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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