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ज्ञानविलास हांसें श्राया ॥ बेटा बेटी कवन हे, किसकी यह माया ॥ प्यारे० ॥१॥ वनो जावनो एकलो, कुण संग रहाया ॥ पंथक होयकर जीलमें, कैसे लपट्यो लाया ॥ प्यारे ॥२॥ नीसर जावो फंदसे,
ग बिनमें नाया ॥ जो निधि चारित श्रादरे,ज्ञानानंद रमाया ॥ प्यारेण ॥३॥ इति ॥
॥पद अगीआरमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ अवधू सुता क्यां इस मठमें ॥१०॥ टेक ॥ इस मठका हे कवन जरोंसा, पम जावे चटपटमें ॥ अ॥ बिनमें ताता जिनमे शीतल, रोग शोग बहु मग्में ॥ १०॥ १॥ पानी किनारे मठका वासा, कवन विश्वास एतटमें॥१०॥ सूता सूता काल गमायो, अजहुँ न जाग्यो तुं घटमें। अ॥२॥ घरटी फेरी आटो खायो, खरची न बांधी वटमें ॥ ॥ इतनी सुनी निधि चारित्र मिलकर, ज्ञानानंद आए घटमें ॥ १० ॥३॥
॥पद बारमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ बिनजारा तें खेप नरी नारी॥ वि०॥टेक॥चार देसावर खेप करी तम, लान
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