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________________ ज्ञानविलास लंयो बहु नारी ॥ बि० ॥ फिरता फिरतां नयो तुं नायक, लाखी नाम संजारी ॥ वि०॥१॥सहसलाख करोमां उपर, नाम फलायो सारी ॥ बि० ॥ बेटा पोतरा बहु घर कीना, जगमें संपत्त सारी ॥ वि०॥ ॥२॥ खूटी खरची लदगयो डेरो, पम्गयो टांमो जारी ॥ बि० ॥ विन खरचीतें कवन संजारे, टांडेकी नई खवारी ॥विण ॥३॥ पहेले देखी पग जो राखे, निधि चारित तुं धारी ॥ वि०॥ ज्ञानानंद पद श्रादरतो, खरची होती सारी ॥ वि०॥४॥इति ॥ ॥पद तेरमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ योगी तेरा सूना मंदिर क्युं॥ योगी० ॥ टेक ॥ बहु महनतकर मंदिर चुनियो, अब नहीं बसता क्युं ॥ योगी ॥ १॥ तीरथजलकर एहने धोया, जोग सुरनि दरव क्युं ॥ योगी॥ जसमजूत ए मंदिर ऊपर, घास लगाया क्युं ॥ यो गी० ॥ ५॥ रामनाम एक ध्यानमें योगी, धूनी ज्युकी त्युं ॥ योगी० ॥ एह विचार करी जाइ साधो, नवनिधि चारित व्युं ॥ योगी० ॥ ३ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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