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झान विलास पहियां, वांके बेसे रंगमें ॥ से बना गल स्याही राखी, सेठ कहलाए नगरम से। वातें लोक जमा सहु राखी, परखी मेली कुठारमें ॥ से॥३॥ तेहने कागल कटको दीधो, नया निचिंता पलकमें॥से॥ सहसलाख कोडोनां कागल, लेवे देवे खलकमें ॥ से०॥४॥ चार दिशावर हाट करी जिन, जारी सराफ परदेशमें ॥से०॥ सेठ कहे हम करोड पतिहे, हम सम नहिं को देशमें ॥से॥५॥जब जन सहु निज मांगन आया, कीधो दिवालोमगनमें से अबतो शेठ योगीजये नागे,माल दीधो सह सुजनमें ॥से॥६॥ जैसेतैसे एकल चल गए, कवमी नहिं ग बाटमें ॥ हाट सुजन कोश् नहिं साथे, लश् खराबी वाटमें। से॥७॥एह विचार करी ना प्यारे, पुण्य पाप लीयो हाथमें ॥ से०॥ तिनतें नवनिधि चारित अविचल, ज्ञानानंद नयो साथमें ॥ से० ॥ इति ॥७॥
॥पद पिस्तालीशमुं॥ ॥ राग सारंग ॥ साहिब हे तेरे संगमें ॥सा॥ टेक ॥ जाके दरव अपरिमित होगा, कबहिन खूटे जंगमें ॥ लेना देनां कबु नहिं जाके, लोगो श्रह
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