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ज्ञान विलास
फिरतां याराहि मानस, अंगुलीयां दिखलावे ॥ पि० ॥ ३ ॥ तिनतें तूं मगरूरी बांडी, जग सम समता लावे ॥ तो नवनिध चारित्र सहायें, ज्ञानानंद पद पावें ॥ प० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद तेतालीशमुं ॥
॥ राग सारंग ॥ बिन वालम कहो कुछ गति मादी, वालम हीं गति नारी ॥ बि० ॥ टेक ॥ सुनो सखी तुम वेग मनावो, सइयां लावो निहारी ॥ बिन० || १ || चांदनी राते मकरध्वज शर, आयलग्यो दुःखकारी ॥ विरहव्यथायें अमने खिनजर, सुख नहिं पामे सारी ॥ बिन० ॥ २ ॥ जलबिन मबली समटलवलती, विरहजाल जइ जारी ॥ इतने ज्ञानानंद वालम याए, चारित संग सुखकारी ॥ बि० ॥३॥ ॥ पद चुमालीशमुं ॥
॥ राग सारंग ॥ सेठ बेठे सारंग महल में ॥ से० ॥ टेक ॥ सेठानी मोह नरपति बेठी, बेटा चार नोपमें ॥ से० ॥ मिथ्या मकरध्वज जसु जाई, व्यापारें गणि कोपमें || से० ॥ १ ॥ उंची दाट बिछात बिठाइ, सुए करे नवरंग में || से० ॥ कनक रतननां भूखन
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