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ज्ञानविलास १११
॥पद एकतालीशमुं॥ ॥राग सारंग ॥ क्योंकर महिल बनावे पियारे ॥ क्यों ॥ टेक ॥ पांच नूमिका महल बनाया, चित्रित रंग रंगावे ॥ क्यों० ॥१॥ गोखें बेगे नाटिक निरखे, तरुणी रस ललचावे, इक दिन जं. गल होगा मेरा, नहिं तुज संग कबु जावे ॥ क्यों ॥२॥ तीर्थंकर गणधर बल चकि, जंगल वास रहा. वे ॥ तेहना पण मंदिर नहिं दीसे, थारी कवन चलावे ॥क्यों॥३॥ हरिहर नारद परमुख चलगए, तूं क्यों काल बितावे ॥ तिनतें नवनिधि चारित श्रादर, ज्ञानानंद रमावे ॥ क्यों ॥४॥ इति ॥
॥पद बैंतालीशमुं॥ ॥राग सारंग ॥ क्या मगरूरी बतावे पियारे ॥ क्यान॥ अपनी कहा चलावे ॥ पि० क्याटेक ॥ कवन देश कुण नगरीसें आया, कहां तुऊ बास रहावे ॥ पि० ॥१॥ कहा जिनस तुम लाए मगरू, किस विध काल बितावे ॥ कहा जाने का मकसद हेगा, कैसो विचार रहावे ॥ पि० ॥२॥ चार दिनां. की चांदनी हेगी, पाडे अंधार बतावे ॥ घर घर
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