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झान विलास नानंद योगी, मिलकर अंग मिलायो ॥सु॥३॥ति
पद उंगणचालीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ में कैसे रखें सखी, पियागयो परदेशो ॥में०॥ टेक ॥ रितु वसंत फूली वनराश, रंग सुरंगीत देशो में॥१॥ दूरदेश गये लालची वालम, कागल एको न श्रायो॥ में ॥ निर्मोही निस्नेही पिया मुऊ, कुण नारी लपटायो ॥ में॥२॥ वसंत मासनी रात अंधारी, कैसें विरह बुजायो ॥ में ॥ इतने निधि चारित पुत वन, ज्ञानानंद घर श्रायो ॥ में ॥३॥ इति ॥
॥ पद चालीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ मेरे पियाकी निशानी, मोरे हाथन श्रावे ॥मे॥टेक॥ रूपी कहुं तो रूप न दीसे, कैसें करी बतलावे ॥ मे ॥ १॥ जोति सरूपी तेद विचारूं, करमबंध कैसें नावे ॥ मे ॥ सिक सना'तन उपजन बिनसन, कैसे विचार सुहावे ॥ मे॥ ॥२॥ वेद पुरानमें नहिं कहि दीसे, किणपर नाव रमावे ॥ मे ॥ यातें चारित ज्ञानानंदी, एकहिं रूप कहावे ॥ मे ॥३॥ इति ॥
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