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झान विलास
१०ए. ॥ पद साडनीशमुं॥ ॥राग वसंत.॥ देखी ईग नारी, सतिय शिरोमणि नाई ॥ दे० ॥ टेक ॥ रूपवंत जे नागी नटके, सबहि के मन जाई ॥ दे ॥१॥ सघलाइ मानस तेह रमावे, मुनि जन शोना दाई॥ दे॥ नोगी जन तिन नांहि बतावे, योगी चित्त रमाई ॥ दे॥ ॥२॥ पंडित याकुं लाड करतहे, श्रह निसि चित्त रमाई ॥ दे०॥ योगासर अंगोअंग रमावे, हाथों हाथ जूलाई ॥ दे० ॥३॥ इनने निरखी मुनि मनचाले, ध्यान धरे चित्त लाई ॥ दे० ॥ निधि चारित ज्ञानानंद पायो, या नारी चित्त श्राई ॥दे॥४॥
॥पद अडत्रीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ सुणलीजो पिताजी, योगीयासें चित्त रमायो॥ सु ॥ टेक ॥ अहनिसि योगी के संग बेसी, जग जन लाज गमायो ॥ सु० ॥१॥ अपने मनरूचि श्रम ए कीधो, चनदिशि वात फखायो ॥ सु ॥ मेरे तो घरसे काम नही हे, योगी पास रहायो । सु० ॥२॥ इतनी कहकर घरसें निकसी, योगी वखन जायो॥ स॥ निधिचारित झा
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