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२५४. संयम तरंग तरा कीना, मायामें लपटाना ॥ निधि संयम शा. नानंद अनुनव, गुरुविन नांहिं लहानांरे॥वि॥३॥
॥पद चोत्रीशमुं॥ ॥राग चाबक ॥ योगिया रे, गुरु विन ज्ञान न नाया ॥ टेक ॥ पुर्धर केसरी बकरी जाइ, बकरी वाघ बंधाया ॥ बकरी चहुटे वाघ नचावे, देखेजन हरखाया रे ॥ गु० ॥१॥ तुरिय वेग हय चाबुक योगें, नाग कुटुंब मसाया ॥ समय अनादें इतउत नटके, मम झायें नरमाया रे ॥ गु० ॥२॥ खिनजर ज्ञानकी वात न जानी, अनुजव वासन नाया ॥ गुरु किरीया संयम ज्ञानानंद, चरण कमल लपटा. या रे ॥ गु० ॥३॥ इति ॥
पद पांत्रीशमुं॥ ॥राग बसंत ॥ अचरज एक नजरगत श्रायो, ज्ञानी गुरु बतलायो ए॥ टेक॥ त्रिजुवनमें एक बाल कुमारी, बिरुद सति कहलाया ए ॥१०॥१॥बि. न घरमां ग पलमें निपने, नंदन तिन सुखदायी ए ॥ रूप अनूपा चार दीकरी, ते पिन योगन जा ए॥ ॥२॥ जेह जनक ते वदन तेहना, मांत
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