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________________ संयम तरंग ॥ पद बत्रीमुं ॥ ॥ रांग जिंजोटी जंगला ॥ विरथा जनम गमाया, योग न जाया ॥ वि० ॥ टेक ॥ जगमें पहले हमही जनमे, मात जनक पढें जाया ॥ वि०॥ मामा मामी नाना नानी, पढें गुरुनाइ रमाया ॥ वि० ॥ १ ॥ जग समऊन या केम समकाइ, मो मन नांही रमाया ॥वि० ॥ चेलेने निज गुरु जनमाया, गुरुमे शीस ननाया || वि० ॥२॥ पढेले योगी पाढे जोगी, श्रनादि अनंत जोगाया ॥ वि० ॥ श्रापहिं मात जनक गुरु चेला, जगमांही जरमाया ॥ वि० ॥ ३ ॥ पाहन वाइन बेसी थूके, अंधो अंध चलाया ॥ वि० ॥ तिनतें संतो निधि संयमयुत, ज्ञानानंद सुहाया ॥ वि०॥४॥ ॥ पद तेत्री शमं ॥ १५३ ॥ राग चाबक ॥ वालमियारे, विरथा जनम गमाया ॥ टेक ॥ परसंगत कर दसदिसि जटका, परसें प्रेम लगाया ॥ परसें जाया पररंग जाया, परकुं जोग लगाया रे ॥ वि० ॥ १ ॥ माटी खाना माटी पीना, माटी में रम जाना ॥ माटी चीवर माटी नूखन, मांटी रंगसो जीनारे ॥ वि० ॥ २ ॥ परदेशी सें ना For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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