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. संयम तरंग १५५ विना जग जाया ए ॥ ते कया चिदानंदें परनी, योगी नाव रमाया ए ॥ १० ॥३॥ सेजें दोउ श्रनुजव रंगें, अह निसि प्रेम लगाया ए ॥ निधि संयम ज्ञानानंद योगी, गुरु किरिया दरसाया ए॥०॥४॥
॥पद बत्रीशमुं॥ ॥ राग वसंत ॥ विविध तूर धुनि नन मंगलगत, ज्ञानी मुनि दिखलाया ए ॥ टेक॥ चनविह घन शुपिर तत वितत, घोर सरें संजलाया ए॥ वि०॥१॥ चंद सूरज परकास सुनावें, योगी साधन साधना ए॥ श्रनुजव तत्त्वसु ज्ञान खुमारी, कबहु न उतरे श्राराधना ए॥वि॥२॥ तूर नहिं पन तूर धनि सुन, नवनिधि सहज निपाया ए ॥ संयम ज्ञानानंद लहे तव, नाचै हसै हरखाया ए ॥ वि० ॥३॥ इति ॥
॥पद साडत्रीशमुं॥ ॥राग जिंकोटी ॥ रहो बंगलेमें वालम करूं तोहे राजीरे ॥ टेक ॥ निज परिणतिका अनुपम बंगला, संयम कोट सुगाजीरे ॥ रहो ॥ चरण करण संपतति कंगुरा, अनंत विरज थंन साजीरे ॥ ॥र ॥१॥ सीतनूमी पर निर्नय सेलें, निरवेद प
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