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ज्ञानविलास १३३ नाव न तजा॥मुटेक॥ जे केश गंगानिर पखाले, काली ऊरण लाइ ॥ विविध नांतकर महनत कीनी, तोपण सित नहिं जा ॥ मु॥१॥ कर्त्तानी तिहां बुधि नहिं चाले,नहिं औषध गुण ला॥ जा. तिरंग तेहनो नहिं पलव्यो, कहा करे चतुरा॥ मु० ॥२॥ तेहनी किरिया सघली फोकट, झान फोकटता जा ॥ तिन कारण निधि संयम अनुजव, ज्ञानानंद रमाश् ॥ मु० ॥ ३॥ इति ॥
॥पद पंच्चोत्तेरमुं॥ ॥ राग जंगलो ॥ श्रनुलव लावोरे योगी, निज घट मांहि रमावो ॥ १० ॥ टेक ॥ अनुजव ज्ञान जगतमें उर्लन, श्रलप संसृतिने जा ॥ उर्जव्य अनव्य जीवने, अनुजव नांही लहा॥०॥१॥ कमवी तुबमी कोसों जटकी, श्रमशठ तीरथ न्हा. ३॥ तोपण तुंबडी कटुता न ांडी, कहा तीरथ फरसा ॥०॥२॥ तिनतें निजघट अंतर निरखों, अनुनव शैलि सुहाय ॥ तनमय नवनिधि चारित्रयोगें, ज्ञानानंद लहा॥ श्र० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ इति श्री ज्ञानविलास संपूर्णः ॥
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