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________________ १३५ . झानविलास धी० ॥ ४॥ सुमति श्रागम मंत्री साथें, वालूमो निकसा ॥ हरखें श्राव्यां निज घरमांहें, राणी मेल करा ॥ धी० ॥ ५॥ तिन अवसर निधि चारित्र श्रादर, झानानंद रमा॥ अनुजक प्याला प्रेम म. साला, रंगें पान करा ॥धी॥६॥इति ॥ ॥पद तहोंतेरमुं॥ ॥राग जंगलो ॥ तुम किहां चाल्यो रे सांश, तुम साथें हुं योगन नश् अब ॥ तु०॥ टेक ॥ तेरे खातर हम घर गंडी, थारे संग चित्त ला॥ किन पर हमने बांमिके चाले, केसें प्रीत लगा ॥ तु॥१॥ किन कारन अमने फुःख दीनो, काहे कुं घर मूका३॥ घात विश्वास करे कहा मोसुं, कुणने पुकारु जा ॥ तु ॥२॥ सां कहे श्रम घरकी याही, रीत पुरानी जा ॥ जबलग तेल दिपकमां बाती, तबलग श्रम तम नाश्॥ तु० ॥३॥ इतनी कहकर सांश चाल्यो, अपने ग्राम सुहा॥ अनुपम नवनिधि चारित्र श्रादर, झानानंद रमाश् ॥ तु० ॥४॥इति ॥ ॥पद चम्मोतेरमुं ॥ ॥ राग जंगलो॥मुनि तम निरखोरे नाइ, जाति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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