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११७, ज्ञान विलास मन राखो रहे ना ॥ वा ॥ १॥ नारी कालीनागन सरिखी, देखत चित्त मामामोल करे रे ॥वा ॥ नारीसंयोगें बरमदत्त परमुख, नरकें उरधर कुक चरे रे ॥ वा० ॥॥श्रार्डकुमर मुनि नारि संयोगें, वरस चउवीस गिहिवास कियो रे ॥ वा ॥ नारीकी प्रीतें इनजव परनव, सुख न लहे पगबंध जयो रे ॥वा॥३॥ उत्तम नर इन नाहिं बतावे, ध्यान धरे वनमांद रहे रे ॥ वा० ॥ निरमल निजगुन श्रातम ध्याने, सुफ समाधि नाव लदे रे ॥वा॥४॥ तिनतें वालम तम पण समजो, कुटिलानी प्रीतमी परिहरो रे ॥ वा ॥ मोसुं तो निधि चारित्रश्रादर, ज्ञानानंद सुख रमण करो रे ॥ वा ॥ ५॥ इति ॥
॥पद बावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ देश माहरो पियाकुं बताय दिजो रे, मेंतो लेजंगी जोगनियाको वेस ॥ दे॥ ए चाल॥को सखी पियाकुं बतावैरी, मेंतो जाजंगी वालम पास॥को॥टेक ॥सारी जग्या पूजीयो,वाल मजीको देश ॥कोश्को साच नहिं लह्यो, जो कागल पटुंतें देश ॥ को० ॥१॥ ज्ञानी ज्ञानी सब कहे,
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