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ज्ञानविलास
११ए मोकुं न दीसे झान॥में तो साचो जब कहुं, पिया रूप कहे मान ॥ कोण ॥२॥ सऊन ऐसो जो मिले, पियाकुं कागल मेल ॥ कागल वांची मुज लखे, पागो उत्तर खेल ॥ को ॥३॥ जबलग कागल तेदनो, नहिं थावे श्रमपास ॥ तबलग जूरी बात सहु, नहि पम मोकुं श्रास ॥ को ॥॥ इतने एह विचारमें, निधि चारितके संग॥श्राए ज्ञानानंद पिउ, रमण करे सुखरंग ॥ को ॥ ५ ॥ इति ॥
॥पद त्रेपनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ मेंतो कैसे पियाकुं सेरी, पिया'मेरो योगियांको वेस ॥ में ॥ टेक ॥ में तो कन्या नूपकी, जाने सकल जिहान ॥ घरसे निकलुं कुण परें ॥ कहो सखी चतुर सुजान ॥ में ॥१॥ सतिय शिरोमणी श्रम बिरुद,बरमचारी शिर मोल ॥ दीसुं नहिं जगलोकमें, माहरो मोल अमोल ॥में ॥॥ बिनपरण्या उत्तम पुरुष, ध्यान धरे दीनरात ॥ ते पण दरशन माहरो, दरश न लदे तिलमात्त ॥ में॥ ॥३॥ में तो मन गमतो कियो, बांडी जग जन वाद ॥ दूर मत रहे वालम मिले, पसरे जग जस
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