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________________ १० ज्ञानविलास वाद ॥ मे०॥४॥ कन्या एह विचारतां, श्राय भिले ततकाल ॥ ज्ञानानंद योगी पिया, चारित युत जगपाल ॥ में ॥५॥इति ॥ ॥पद चोपनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥कोश्योगी हमकुं जानेरी ॥मेरो को नामकुं जान ॥ को ॥ टेक ॥ मानस नहिं हम नारी नांहिं, नांहिं नपुंसक जान ॥ को॥१॥ दादा बाबा नहि हम काका, ना हम कुणके बाप ॥ कोण ॥ नाना मामा हम नहि मोसा, कोसें नहिं बालाप ॥ को० ॥२॥ बेटा पोतरा गोलक नांहिं, नाती उहिता न जान ॥ दादी चाची बेटी पोती, ना हम नारी मान ॥ को० ॥३॥ गुरु चेला नहिं हम काढूके, योगी जोगी नांह ॥ को० ॥ पांच जातमें नहिं हम कोश, नहिं को कुल गंह ॥ को ॥ ॥४॥ दरशन ज्ञानी चिद्घन नामी, शिववासी इम जान॥ को० ॥ चारित्र नवनिध अनुपम मूरति, झानानंद सुजान ॥ को० ॥ ५॥ इति ॥ ॥पद पंचावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ बनी दगाबाज, रे तूं बमि द Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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