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ज्ञान विलास ११ गाबांज, प्यारी तूं बमिदगाबाज ॥ टेक ॥ तेरे खातर शृंगर दरि बिच, रही दुःख सह्यो में अपार ॥ हांसी खूसी बहु नातरां कीधां,तूं कां नूलि गवार॥ रे तूं बमि ॥१॥ कवडी साटे तेरे खातर, मादरो किधो मोल ॥ ढूंढक योगी यति सन्यासी ॥ मुंमित कियो तें रोल ॥रे तूं बमि ॥२॥ मुहमो बांधी कान ते फाडी, बहुविध वेस कराय ॥ कपट करी सहु पाखंम कीधा, जन लूंट्यो मन नाय ॥ रेतूंबमि ॥३॥घर घर जटक्यो तेरे साथें, पोतें पाप नराय ॥ अब तूं काह न बोले मोसुं, तुं कपटीनी दिखलाय ॥ रेतूं बमि० ॥४॥ ऐसो देखी जयोहूं उदा. सी, निधि चारित्र लहाय ॥ ज्ञानानंद चेतनमय मूरति, ध्यान समाधि गहाय॥ रे तूं बमि० ॥५॥इति ॥
॥ पद उपनमुं॥ ॥राग महार ॥ प्यारे साहेबशुं चित्त लावोरे, साहेब दूर कहलावो रे ॥ प्या० ॥ टेक ॥ साहेब' एकही हे जग व्यापी, नहि कहे नेद लहावे रे ॥ प्या॥॥ जे के साहेब नेद बतावे, ते बहुरा जग पावे ॥पारसनाथ कहे को बरमा, विष्णु शिव कहे
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