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ज्ञानविलास
॥ पद पचाशमुं॥ ॥ राग कहेरवा ॥ बोरी बामनकी, बोरी बामनकी, अंगिया कुं अंतर लगायके चली ॥ हाथमें पिंजरा गुलाबकी बमी, जरे बजारमें घुरती खडी॥ ए चाल ॥ मोरे जोले पिया, मोरे जोले पिया, मो. पर जाउमा मालकें चले ॥ मो० ॥ टेक ॥ मेरे हिरदय बिच राखती, कलु नहिं मारे तोसुं रति ॥ मो० ॥ मोसें पिया तम काह उदास, हुं थारे रंग चरणारी दास ॥ मो० ॥ १॥ जो थारा मनमें रहि एसी हुँस, पेहेलेहि जानति करति रूस ॥ मो० ॥ विन बालम मेरो विगमे काल, क्योंकर वीते हाल निहाल ॥ मो० ॥२॥ श्रबलाकें पति गति मति जान, अनुपम शील नूषण गुणखान ॥ मोरे ॥ इतने नवनिधि चारित्र रंग, मिलगए ज्ञानानंद सुरंग ॥ मोरे ॥३॥ इति ॥
॥पद एकावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ प्रीतके को फंदें पडो ना ॥ ए चाल ॥ वालम नारिके फंदें पडो ना॥ वा ॥ टेक ॥ जो तम नारी के फंदमें पडिहो, कोटिजतन
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