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________________ - - ११६ झान विलास अब हम हाथ, ढील न करो प्यारी चलो हम साथ ॥ मे ॥ तम खातर अम कुःख बहु कीन, प्यारी मत गंडे अमने दीन ॥ मे ॥२॥ नारी कहे परो जारे निगोद, थारे मारे कुण करे वात निखोद ॥ मे ॥ श्रम अब चालुं किंहां थारे संग धूत, तुं मूरख शिर मोल कुमूत ॥ मे ॥३॥ इतनी सुनकर नयो ते उदास, कुटिला अबलानी कुण करे श्रास ॥ मे ॥ तिन अवसर लही निधि चारित्त, झानानंद मूरति नजे सुख चित्त॥मे॥४॥इति ॥ ॥ पद गणपचाशमुं॥ ॥ राग कहेरवा ॥ एक अचंलो मुज मन वशियो॥ ए० ॥ टेक ॥ चालतो हालतो मूंगर दीगे, विचमें एक सिखर उंचो वसियो॥ए॥॥ोटा पांच शिखर जसुं चउदिशि, नाना तरु विण मंडित रहियो॥ ए० ॥ सरव काल सागर विच रहितो, कवन चलावे ते श्रम कहियो ॥ ए॥२॥ मानस नहिं को तेहमां दिसे, ध्रुव श्रध्रुवपणो तेहमें रहियो ॥ ए० ॥ सुगर बिच नवनिधि चारित्र युत, ज्ञानानंद मूरति गुण गहियो ॥ ए॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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