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संमय तरंग १३५ कोश्न परमाने ॥ स ॥ टेक ॥ जे कोइ परमानकू पूजे, तानातानी कर हु ॥ सा ॥१॥गीतारथनी नहिं माने, कहीएतो पाखंम सहु जाने ॥श्रुति गत साची नहिं जावे, जग जन कूड सहु नावे ॥ सा०॥ २॥मतवाला अमबहु मलिया,नहि कोश्परमार्थी क लिया ॥ तिनतें निधि संयम चित्तें, नजे ज्ञानानंद सुख नित्य ॥ सा० ॥३॥ इति ॥
॥ पद दशमुं॥ ॥राग काफी ॥ मतलबियो जग जन देखो, को उपगारी नहिं पेखो ॥ म ॥ टेक ॥ नियां पटुतर स्वारथकी, पाठ न पूजे परमारथकी॥ म० ॥ १॥ गत यौवन निःसनेही, तरुणी पण विषयी न रेही । जोजन पाजे नहिं जावे, अमृत पण कांजी कुण खावे ॥ म ॥२॥ एह विचारें मुनि समजो, पर उपगारक गुन बूजो॥अनुपम निधि चारित पावो, (जिम ) निर्मल ज्ञानानंद जावो॥ म०॥३॥इति ॥.
॥पद अगीआरमुं॥ • ॥ राग फाग ॥ हमरी चुनमी किन बोरीरो लोगों ॥ ए चाल ॥ श्रबलानी ग बात सुनो पिया, ऐसी
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