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संयम तरंग विजाव हे सबही, अपनो न बांड हे कबही॥ सा ॥१॥ को प्रकारे नहिं देखो, उषर बीजको लेखो॥ रासन गंगाजल धोयो, तोपण लोटे उकडायो ॥ सा ॥२॥ सूकर पायसकुं बंमी, श्रशचिनोगे जे मंमी ॥ मध घतकर सींचो तबहीं, नींब न मीगे होय कबहीं ॥ सा ॥३॥ ज्ञानी ध्यानी के वेषी, निजमत पखपातें पेखी ॥ तिनतें अनुभव ज्ञानानंदें,सुनजो चारित्रश्रानंदें॥सा॥४॥
॥पद आठमुं॥ ॥राग काफी ॥ देखो प्यारे सब जग कलही, नहिं को शांति मूरत पेही ॥देण्॥ मुनिजन उपसम गुण धारी, कलही कोप कारण सारी ॥ दे ॥१॥ सेकुं तसकर सहु गावे, तसकर सेठ करी लावे ॥ सतवादीकुं कहे कूमा, मिरखाकुं सत कहे-मूंमा ॥ दे ॥२॥ कमल प्रन सूरी जानो, श्रुति दृष्टांत कहे मानो॥तिनतें निधि चारित धारी, नजो झानानंद अधिकारी ॥ दे ॥३॥ इति ॥
॥पद नवमुं॥ ॥ राग काफी॥सब जग जन अपनी ताने, जिहां
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