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जश विलास
पद बीजुं ॥
॥ राग सारंग ॥ कंत बिनु कहो कौन गति नारी ॥ टेक ॥ सुमति सखी जई वेगी मनावो, कहे चेतन सुन प्यारी ॥ कंत० ॥ १॥ धन कंन कंचन महल मालिए, पिउ बिन सबहि उजारी ॥ निद्राजोग बहु सुख नांही, पियु बियोग तनु जारी ॥ कंत०॥२॥ तोरे प्रीत पराई डुरिजन, ते दोष पुकारी ॥ घर जंजनके कहन न कीजें, कीजे काज बिचारी ॥ कंत० ||३|| विम मोह महामद बिजुरी, माया रेन - धारी ॥ गर्जित रति लवे रति दाडुर, कामकी ज सवारी ॥ कंत० ॥ ४ ॥ पिच मिलवेकुं मुक मन तलफे, में पि खिजमतगारी ॥ जुरकी देश गये पिउ मुऊकुं, न लहे पीर पीयारी ॥ कंत० ॥ संदेश सुनी आए पिउ उत्तम, जइ बहुत मनुहारी ॥ चिदानंद घन सुजस विनोदें, रमे रंग अनुसारी ॥ कंत० ॥ ६ ॥ ॥ पद त्रीजुं ॥
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॥ राग धन्याश्री ॥ परम गुरु जैन कहो क्यौं होवे, गुरु उपदेश बिना जन मूढा, दर्शन जैन बिगोवे ॥ परम गुरु जैन कहों क्यों होवे ॥ टेक ॥१॥ कहत कृ
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