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जशविलास पानिधि समजल कीले, कर्म मयल जो धोवें ॥ बहुल्ल पापमल अंग'न धारे, शुद्ध रूप निज जोवे॥परम॥॥ स्यादवाद पूरन जो जाने, नय गर्जित ज. स वाचा ॥ गुन पर्याय अव्य जो बूके, सोश जैन हे साचा ॥परम॥३॥ क्रिया मूढमति जो अज्ञानी, चालत चाल थपूठी ॥ जैनदशा उनमेही नाही, कहे सो सबही जूठी ॥परमा पर परनति अपनी कर माने, किरिया गर्वै घेहेलो ॥ उनकुं जैन कहो क्युं कहिये, सो मूरखमें पहिलो ॥परम॥५॥ ज्ञान नाव शान सबमांही, शिव साधन सर्दहिए ॥नाम नेखसे काम न सीके, नाव उदासे रहिए ॥ परम ॥६॥ ज्ञान सकल नय साधन साधो, क्रिया ज्ञानकी दासी ॥ क्रिया करत् धरतुहे ममता, याहि गले में फांसी ॥परमा॥ क्रिया बिना ज्ञान नहिं कबहुँ, क्रिया ज्ञान बिनु नांही ॥ क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहतुहे, ज्यौं जल रस जलमांही ॥ परम ॥७॥ क्रिया मगनता बाहिर दीसत, ज्ञान शक्ति जस जांजे ॥ सदगुरु शीख सुने नहीं कबहुँ, सो जन जनतें खाजे ॥परमगाए॥ तत्व बुधि जिनकी परनति
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