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जशविलास हे, सकल सूत्रकी कूची ॥ जग जसवाद वदे उन हीको, जैन दशा जस ऊंची ॥ परम ॥१०॥ इति॥
॥पद चोथु॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ परम प्रनु सब जन शब्दें ध्यावे ॥ जब लग अंतर जरम न नांजे, तबलग कोऊन पावे ॥ परम प्रजु॥१॥ टेक ॥सकल अंस देखे जग जोगी, जो खिनु समता आवे ॥ ममता अंध न देखे याको, चित्त चिहुं जैरे ध्यावे ॥ परम प्रजु॥२॥ सहज शक्ति अरु नक्ति सुगुरुकी,जो चित्त जोग जगावे ॥ गुण पर्याय अव्यसुं अपने, तो लय कोउ लगावे ॥ परम प्रजु० ॥३॥ पढत पूरान वेद अरु गीता, मूरख अर्थ न नावें ॥श्त ऊत फरत ग्रहत रसनाही, ज्यौं पशु चर्वित चावे॥ परम प्रज्जुन ॥४॥ पुजलसें न्यारो प्रनु मेरो, पुजल आप डिपावे॥ उनसे अंतर नहीं हमारे, अब कहां जागो जावे॥ परम प्रजु० ॥५॥ अकल अलख अज अजर. निरंजन, सो प्रनु सहज सुहावे ॥ अंतरजामी पूरन प्रगव्यो, सेवक जस गुन गावे॥परम प्रजु०॥६॥इति॥
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