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जशविलास
४ पाय सुजस, मुगति पंथसो पोस ॥ के इति ।
॥ पद त्रेसपमुं॥ ॥ राग गोडी सारंग ॥ तुहारे शिर राजत श्रजब जटा, बारके मानुं गयल न बारत ॥ सीस सपगार बटा ॥ तुहारे ॥१॥ किधुं गंगा श्रमरीस सुर सेवत, यमुना उन्नय तटा ॥ गिरिवर सिखरें एह अनोपम, उन्नत मेघ घटा ॥ तु॥२॥ केसे बाल लगे जवि नवजल, तारत अति विकटा ॥ ह. रि कहे जस प्रजु षन रखो ए, हम हिंथति उलटा ॥ तु० ॥३॥
॥पद चोसम्मुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ माया कारमीरे, माया म करो चतुर सुजाण ॥माया वायो जगत ववुधो, फुःखीयो थाय अजान ॥ जे नर मायायें मोहि रह्यो, तेने सुने नही सुख ठगम ॥ माया ॥१॥न्हाना मोटा नरखी माया, नारीने अधकेरी॥ वली विशेष अधिकी माया, गरढाने जाजेरी मायाजा॥ माया कामण माया मोहन, माया जग धूतारी ॥ मायाथी मन सहुनुं चलीयुं, लोनीने बहु प्यारी ॥माया॥
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