SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० जशविलास ॥३॥ माया कारन देश देशांतर, अटवी वनमा जाय ॥ जहाज बेसीने छीप छीपांतरें, जश् सायर जंपलाय ॥ माया ॥ ४॥ माया-मेली करी बहु नेली, लोने लक्षण जाय ॥ जयथी धन धरतीमा गाढे, उपर विसहर थाय ॥ माया ॥५॥ योगी जति तपसी संन्यासी, नग्न थर परवरिया ॥ बंधे मस्तक अग्निता, मायाथीन उगरिया ॥ माया॥ ॥६॥ शिवजूति सरिखो सत्यवादी, सत्यघोष कहेवाय ॥ रत्न देखी तेनुं मन चलियुं, मरीने 3. गति जाय ॥ माया ॥७॥ लोज धरत मायायें रमियो, पमियो समुल मोकार ॥ मुठ माखनीयो थश्ने मरियो, पोतो नरक मोकार ॥ माया॥७॥ मन वचन कायायें माया, मूकी वनमां जाय ॥धन धन ते मुनिश्वर राया, देव गांधर्व जस गाय ॥ माया ॥ए ॥ इति ॥ ॥ पद पांशपमुं॥ ॥ कब घर चेतन श्रावेंगें, मेरे कब घर चेतन श्रावेंगे ॥ टेक ॥ सखिरि लेबु बलैया बार बार ॥ मेरे कब० ॥ रेन दीना मानुं ध्यान तुं साढा, कब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy