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जशविलास ॥३॥ माया कारन देश देशांतर, अटवी वनमा जाय ॥ जहाज बेसीने छीप छीपांतरें, जश् सायर जंपलाय ॥ माया ॥ ४॥ माया-मेली करी बहु नेली, लोने लक्षण जाय ॥ जयथी धन धरतीमा गाढे, उपर विसहर थाय ॥ माया ॥५॥ योगी जति तपसी संन्यासी, नग्न थर परवरिया ॥ बंधे मस्तक अग्निता, मायाथीन उगरिया ॥ माया॥ ॥६॥ शिवजूति सरिखो सत्यवादी, सत्यघोष कहेवाय ॥ रत्न देखी तेनुं मन चलियुं, मरीने 3. गति जाय ॥ माया ॥७॥ लोज धरत मायायें रमियो, पमियो समुल मोकार ॥ मुठ माखनीयो थश्ने मरियो, पोतो नरक मोकार ॥ माया॥७॥ मन वचन कायायें माया, मूकी वनमां जाय ॥धन धन ते मुनिश्वर राया, देव गांधर्व जस गाय ॥ माया ॥ए ॥ इति ॥
॥ पद पांशपमुं॥ ॥ कब घर चेतन श्रावेंगें, मेरे कब घर चेतन श्रावेंगे ॥ टेक ॥ सखिरि लेबु बलैया बार बार ॥ मेरे कब० ॥ रेन दीना मानुं ध्यान तुं साढा, कब
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