SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जश विलास हुंके दरस देखावेंगे ॥ मेरे कब० ॥ १॥ विरह दीवानी फिरु ढुंढती, पीठ पीन करके पोकारेंगे ॥ पीउ जायं मले ममतासे,काल अनंत गमावेंगे॥मेरे कबण ॥२॥ करुं एक ज़पायमें उद्यम, अनुजव मित्र बोलावेंगे ॥ श्राय उपाय करके अनुनव, नाथ मेरा समजावेंगे ॥ मेरे कब० ॥३॥ अनुजव मित्र कहे सुनो साहेब, अरज एक अवधारेंगे ॥ ममता त्याग समता धर अपनो, वेगें जाय मनावेंगे ॥ मेरे कब०॥४॥अनुजव चेतन मित्र मिले दोऊ, सुमति निशान घुरावेंगे ॥ विलसत सुख जस लीलामें, अनुजव प्रीति जगावेंगे ॥ मेरे कब० ॥५॥इति ॥ ॥पद गसपमुं॥ ॥ राग मोतीमानी देशी ॥ सूरत मंगन पास जिणंदा, अरज सुणो टालो पुःख दंदा ॥ साहेबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला ॥ तुं साहेब हुँ ढुं तुज बंदा, प्रीति बनी जैसी कैरव चंदा ॥सा॥९॥ तुजसुं नेह नहीं मुज काचो, घणही न नांजे हीरो जाचो सा॥ देतां दान ते कांश विमासो, लागे मुज मन एह तमासो ॥ सा० ॥॥ केडलागा ते केड न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy