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________________ जशविलास ४१ जुले धीगुण आठरे ॥ बार नावना पंचाली श्रचरय करेरे, कोरी कोरी कोरणी काउरे ॥ ०॥॥हां श्रावी समता राणीसुंप्रखरमोरे,सारि सारि थिरता सेजरे ॥ किम जश् शकशो एकवार जो श्रावशोरे, रंज्या रंज्या हियमानी हेजरे ॥ मु०॥४ ॥ वयज अरज सुनी प्रजु मनमंदिर आवियारे, श्रापे तुग तुग त्रिजुवन नाणरे ॥ श्री नयविजय विबुध पय सेवक नणेरे, तेणे पाम्या पाम्या कोमि कल्यापरे ॥ पु० ॥५॥ इति ॥ ॥पद त्रेपनमुं॥ ॥सङन राखत रीति नली, बिनु कारन उपकारी उत्तम, जाइ सहज मिति ॥ उर्जनकी मन परिनति काली, जैसी होय गली ॥ स॥१॥ोरनको देखत गुन जगमें, उर्जन जाये जली ॥ फल पावे गुन गुनको ज्ञाता, सजन हेज हली ॥ स० ॥ ॥॥ऊंच इति पद बेठो फुर्जन, जाइ नांहिं बली ॥ उपगृह उपर बेठी मीनी, होत नहिं उजली॥ स ॥३॥ विनय विवेक विचारत सजन, ना कलाव जली ॥ दोष लेश जो देखे कबहुँ, चाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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