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जश विलास
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टकिया, क्रोध तणुं बल एह ॥ ज० ॥ ८ ॥ समता जाव वली जे मुनि वरिया, तेदनो धन्य अवतार ॥ खंधक ऋषिनी खाल उतारी, उपसमें उतारयो पार ॥ ज० ॥ ए ॥ चंडरुद्र श्राचारज चलतां, मस्तक दीया प्रहार ॥ समता करतां केवल पाम्यो, नवदीक्षित अणगार ॥ ज० ॥ १० ॥ सागरचंदनुं शीश प्रजास्युं, नीसनसेन नरेंद्र ॥ सुमता जाव धरी सुरलोकें, पोतो परम श्रानंद ॥ ज० ॥ ११ ॥ खेमा करतां खरच न लागे, जांगे कोड कलेस ॥ अरिहंत देव श्राराधक थाये, वाधे सुजस प्रवेश ॥ ज० ॥ १२ ॥ रति ॥
॥ पद तदोंतेरमुं ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ प्रभु मेरे तुं सब वातें पूरा, परकी प्राश कहा करे प्रीतम, ए किए वातें अधूरा ॥ प्रभु ॥ १ ॥ परवश बसत लहत परतद दुःख, सबहीं बासें सनूरा || निजघर आप संचार संपदा, मत मन होय सनूरा ॥ प्र०॥२॥ परसंग त्याग लाग निजरंगें, यानंद वेली अंकूरा ॥ निज अनुजवरस लागे मीठा, ज्युं घेवर में बूरा ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ अपने ख्याल पलक में खेले, करे शत्रुका चूरा ॥ सहजानंद
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