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________________ जशविलास अचल सुख पावे, घरेजगजस नूरा॥प्रजु० ॥॥इति॥ ॥पद चम्मोतेरमुं॥ ॥ अथ श्री पूजाविधिनुं पार्श्व जिन स्तवन ॥ ॥ शालिना जोगी रह्यो ॥ ए देशी ॥ पूजाविध मांहे नावियेंजी, अंतरंग जे नाव ॥ ते सवि तुक श्रागल कहुंजी,साहेब सरल खन्नाव। सुहंकर अवधारो प्रजुपास ॥ ए श्रांकणी ॥ दातण करतां नाविएंजी, प्रजुगुण जल मुख सुरु ॥ ऊल उतारी प्रमत्तताजी, हो मुझ निर्मल बुझ ॥ सु॥ ॥२॥ जतनायें स्नानें करीजी, काढो मेल मिथ्यात॥ अंगुगे अंग शोषवीजी, जाणो हुँ अवदात ॥ सु॥३॥ क्षीरोदकनां धोतियांजी, चित्तवो चित्त संतोष ॥ श्रष्टकर्म संवर जलोजी, श्राउपडो मुहकोश ॥ सु० ॥४॥ श्रोरशीयो एकाग्रताजी, केसर ज. क्ति कल्लोल ॥श्रझा चंदन चिंतवोजी, ध्यान घोल रंग रोल ॥ सु० ॥५॥ नाल वढं आणा नतीजी, तिलकतणो तेह नाव ॥ जे श्रानरण उतारीयेंजी, ते उतारो निज नाव ॥ सु०॥६॥ जे निर्माल उतारियेंजी, ते तो चित्त उपाध, पखाल करतां चिंतवोजी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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