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ज्ञान विलास
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धरम कर घर घर जटके, नांहिं धरम दिखालो || वा० ॥ १ ॥ बाहिर दृष्टि योग वियोगें, होत महामतवालो | कायर नर जिम मद मतवालो, सुख विजाव निहालो || वा० ॥ २ ॥ बाहिर दृष्टि योगें नविजन, संसृति वास रहानो ॥ तिनतें नवनिधि चारित खादर, ज्ञानानंद प्रमानो ॥ वा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद जंगणसाठमुं ॥
॥ राग मल्हार ॥ ज्ञानकी दृष्टि विचारो, साधो माइ श्रतम दृष्टि संजारो ॥ सा० ॥ टेक ॥ अनुकरमें शुद्धाने अनुभव, ज्ञेय सकल सुविचारो ॥ ज्ञा ज्ञेयकी एकता यादर, बहिरातम सुं निवारो ॥ सा० ॥ १ ॥ ज्ञानदृष्टि जे अंतर जावें, सुद्धरूचि रूप पहिचानो, अंतरातम ज्ञानातम जावें ॥ होय परमातम जानो ॥ सा० ॥ २ ॥ परमातम ते निजगुन जोगी, चारित ज्ञान बखानो ॥ ज्ञानानंद चेतनमय मूर्त्ति, आनंद जावसु जानो ॥ सा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद साठमुं ॥
॥ राग मल्हार || अनुभव ज्ञान संजारो, साधो जाइ मत एकंत हव वारो ॥ सा० ॥ टेक ॥ ज्ञान
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