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ज्ञानविलास विना जे किरिया नांखे, अंध नर सम वन मोलें। श्रागममां ते देश श्राराधक, सर्व विराधक · बोले ॥ सा॥१॥ किरिया बांमी ज्ञान जे माने, पंगुल नर सम जानो ॥ सरव श्राराधक दिव्य विचारें, दे. श विराधक मानो ॥ सा ॥ २॥ तिनतें ज्ञान सहित जे किरिया, करतां कारज सारो ॥ जिम अंध पंगुल दोनु मिलकर, वनसें निसरे सारो ॥ सा ॥ ॥३॥तिनतें एकंत मत पख बांडी, अंतरजाव विचारो ॥ अनुपम नवनिधि चारित संयुत, ज्ञानानंद संजारो ॥ सा ॥४॥इति ॥
॥पद एकशपमुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ सूनो सखी मोकुं खूट मचायो ॥ सू० ॥ टेक ॥ बहु वासरसे विनय व्यथायें, अंगें फुःख रहायो । एक दिन मजन सनान करी श्रम, नूषन अंग रहायो ॥ सू० ॥१॥ रंग कसूंबा चूनमी पहिरी, पांचमी वरत रहायो ॥ ग योगी मतवालो श्रायो, नोलें नगति लहायो ॥सूणा॥ दिनजर मोसें गीत गवायो, सांजे नाच नचायो ॥ रंगमहल बिच सेजें पोढी, मोने रंग ललचायो॥सू०॥
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