________________
४३.
जशविलास
॥ पद उप्पनमुं॥ ॥ बाद बादीसर ताजे, गुरु मेरो गछ राजे, पंच महाव्रत जहाज, सुधर्मा ज्युं सवायो हे॥ बा ॥ ॥१॥ बिध्याको वडो प्रतापसंग, जल ज्युं उठत तुरंग, निरमल जेसो संग, समुफ कहायो हे ॥ बा० ॥२॥ सत्तसमुन नस्यो, धरम पोत तामे तस्यो, शील सुखान वालम, क्षमालंगर मास्यो हे॥ बा० ॥३॥ सहरू संतोष करी, तपतो तपी ह्या नरी, ध्यान रंजक देत धरी, मोला ग्यान चलायो दे॥ बा ॥ ४ ॥ एसो जहाज क्रियाकाज, मुनिराज सजो साज, दया मया मणि माणिक, ताहिमें जरायो हे ॥ बा० ॥५॥ पुण्य पवन श्रायो, सुजस जहाज चलायो, प्राणजीवन एसो माल, घर बेठे पायो हे ॥ बा ॥६॥ इति ॥
॥पद सत्तावनमुं॥ ॥एरी आज श्रानंद जयो मेरे तेरो, मुख निरख निरख रोम रोम शीतल जयो अंगोअंग ॥ ए॥ सुक समजल समता रस जीलत, आनंद रंग ज. यो अनंतरंग ॥ ए॥१॥ एसी थानंद दशा प्र.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org