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जश विलास
गटी चित्त, अंतर ताको प्रजाव चलत, निरमल गंगवादी गंग ॥ समता दोन मिल रहे, जस विजय जीलत ताके संग ॥ ए० ॥ २ ॥ ॥ पद अठावनमुं ॥
॥ जो जो देखे वीतरागने, सो सो होशे वीरारे ॥ बिन देखे होसे नहीं कोई, कांइ होए अधीरा रे ॥ जो० ॥ १ ॥ समय एक धनहीं घटसी, जो सुख दुःखकी पीमारे ॥ तुं क्युं सोच करे मन कूका होवे वज्र जो हीरारे ॥ जो० ॥ २ ॥ लगे न तीर कमान बान क्युं, मारी सके नहीं मिरारे ॥ तुं संजार पुरुष बल अपनो, सुख अनंत तो पीरारे ॥ जो० ॥ ३ ॥ नयन ध्यान धरो वा प्रजुको, जो टारे जव जीरारे ॥ सजसचेतन धरम निज अपनो, जो तारे जव तीरारे ॥ जो० ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ पद प्रोगणसामुं ॥
॥ जजन बिनुं जीवित जेसे प्रेत, मलिन मंदमति डोलत घर घर, उदर जरनके देत ॥ ज० ॥ १ ॥ डुर्मुख वचन बकत नित निंदा, सजन सकल दुःख देत ॥ कबहुं पापको पावत पैसो, गाढे धुरीमे देत ॥
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